Man aur bichar
1.ध्यान में आप पाएँगे कि मन स्वयं की अन्तर्तम गहराई में पहुँच जाता है, पर उसी समय कुछ ऐसा भी है जो आपके भीतर से बाहर की ओर आ जाता है। चिर काल से मन में पड़ी हुई कोई गहरी छाप और अनेकों विचार बाहर आ जाते हैं और मन की गहराई खो जाती है। समय के साथ आप इस प्रक्रिया को अगर बार बार दोहराते हैं तो आप पाएँगे कि आप का पूरा स्वभाव ही बदल गया है।
आप उस समय ध्यान की स्थिति में पहुँचते हैं जब आप के मन में उठ रहे विचार समाप्त हो जाते हैं। विचार कई तरीकों से मन में उत्पन्न होते हैं और आपको भ्रमण के लिए ले जाते हैं। क्या आप पहचान सकते हैं कि इनमें से कौन से विचार आपको घेर कर रखते हैं : इच्छाएँ, महत्त्वाकांक्षा, उम्मीदें, संदेह, अप्रिय यादें, तृष्णा, चिंता या परेशानी?
2. इच्छाएँ मन में उत्पन्न होते हैं
इच्छा का अर्थ है कि आपको वर्तमान का समय ठीक नहीं लग रहा है। इच्छाएँ मन में तनावों को जन्म देती हैं। प्रत्येक इच्छा तृष्णा उत्पन्न होने का कारण बन जाती है। इस स्थिति में ध्यान का लगना संभव नहीं है। आप अपनी आँखों को बंद करके बैठ जाते हैं, परन्तु इच्छा और विचार उत्पन्न होते रहते हैं। आप स्वयं को मूर्ख बनाते रहते हैं कि आप ध्यान कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में आप दिन में सपने देख रहे होते हैं!
जब तक आपके मन में इच्छाएँ चलती रहेंगी, आपको पूर्ण विश्राम नहीं मिलेगा।
"आपको योग ( स्वयं के साथ मिलन ) की प्राप्ति तब तक नहीं होगी जब तक आप अपनी इच्छाओं या लालसाओं का त्याग नहीं करेंगेl" - भगवत गीता
प्रत्येक इच्छा या महत्त्वाकांक्षा आँखों में एक रेत के कण के समान है। कण आँख के भीतर होने से न तो आप आँखों को खोल के रख सकते हैं और न ही उसे बंद कर सकते हैं l वह दोनों स्थितियों में असुविधाजनक है।
वैराग्य इस धूल के कण को आँखों से निकालने के समान है जिससे आप आँखों को स्वतंत्र रूप से खोल या बंद कर सकें। इस परेशानी से मुक्त होने का एक दूसरा उपाय यह है कि अपनी इच्छा का विस्तार कर उसे बड़ा बना दें। सिर्फ एक छोटा सा रेत का कण आपकी आँखों में परेशानी दे सकता है परन्तु एक बड़ा पत्थर या चट्टान आपकी आँखों के भीतर कभी जा ही नहीं सकता।
आपका आपकी इच्छाओं पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। यहाँ तक कि आप स्वयं को यह कहें कि, "इच्छाएँ दुःख का कारण हैं। मेरी कोई इच्छा नहीं होनी चाहिए l मैं कब इच्छाओं से मुक्त हूँगा?“ तो यह भी एक इच्छा है। इसलिए जब इच्छाएँ आती हैं तो उन्हें पहचानें और जाने दें। इस प्रक्रिया को 'सन्यास' कहते हैं।
जब कोई इच्छा आप में उठती है और आप उसे समर्पित कर के केंद्रित हो जाते हैं, तो फिर आप अडिग हो जाएँगे और कुछ भी आपको केंद्र से दूर नहीं कर सकेगा।
3.Bichar chinta aur paresani
आप जिस वस्तु की कामना करते हैं उसके होने पर भी और उसके न होने पर भी आप व्यथित रहते हैं! उदाहरण के लिए, यदि आपके पास पैसा है, तो वह भी परेशानी का कारण बन जाता है। आपको डर और चिंता लगी रहती है कि इस पैसे का निवेश करें या न करें।
यदि आप उसका निवेश करते हैं तो आपको चिंता होती है कि वह बढ़ रहा है या कम हो रहा है l अन्यथा आपको शेयर बाजार के उतार चढ़ाव के बारे में चिंता हो जाती है।
यदि आप के पास पैसे नहीं है, तब तो आप चिंतित होते ही हैं।
वह सम्पूर्ण स्वतंत्रता जिसमें चीज़ों के होने या न होने से आप विचलित नहीं होते हैं, 'मुक्ति' कहलाती है।
एक ऐसे बीते हुए समय के बारे में सोचें, जब आप चिंताग्रस्त थे। पांच वर्ष पूर्व एक दिन आप किन चिंताओं में घिरे थे, उसकी कल्पना करें। जैसे कि
‘क्या मुझे नौकरी मिल जाएगी?''क्या मैं ठीक हो जाऊँगा/जाऊंगी?’'क्या मुझे कक्षा में कार्य को नहीं करने के लिए अपमानित होना पड़ेगा?’
यह उस समय के लिए एक बड़ी बात रही होगी, लेकिन आज आप अपनी उस पुरानी चिंता को याद भी नहीं करते हैं। हर बार जब आप चिंता करते हो तो वह आपको ताज़ी और नई लगती है। जब आप उन चिंताओं को याद करते हैं जो आज पुरानी हो चुकी हैं और अब चिंता का कारण नहीं रही हैं, तो फिर यह भी मान कर चलिए की आपकी आज की चिंता भी वास्तव में पुरानी और बासी है। चिंता द्वारा घिरे रहने का कारण एक ही है- आपका भ्रम कि आप सदैव जीवित रहेंगे।
4.Dhayan aur bichar
जब तक आप किसी योजना को अपने मन में पकड़ कर रखेंगे, तब तक आपका मन स्थिर नहीं हो पाएगा।
क्या आपने कभी इस बात पर विचार किया है कि जब आप बेचैनी, आवेश और इच्छा को लेकर बिस्तर में सोने जाते हैं तो आपको गहरी नींद नहीं आती है? अति महत्त्वाकांक्षी लोगों को गहरी नींद नहीं आती है क्योंकि भीतर से उनका मन मुक्त नहीं होता है। जब आप सो जाते हैं तो कुछ समय के लिए योजनाओं और महत्त्वाकांक्षाओं का नहीं होना सा प्रतीत होता है परन्तु वास्तव में वे वहीं होती हैं।
आप निद्रा को धारण कर के तभी विश्राम कर पाएँगे जब सोने से पहले आप सब विचारों और योजनाओं को त्याग देंगे। इसी प्रकार, जब आप
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