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अवचेतन मन क्या है एवं इसका उपयोग कैसे करे dosto avchetan man ek suparpawar se rileted hota h
मनोवैज्ञानिकों ने मन को दो बड़े भागों में विभक्त किया है।
1. चेतन मन – मस्तिष्क का वह भाग, जिसमें होने वाली क्रियाओं की जानकारी हमे होता हैं, चेतन मस्तिष्क है। यह वस्तुनिष्ठ एवं तर्क पर आधारित होता है।
2. अवचेतन मन – जाग्रत मस्तिष्क के परे मस्तिष्क का हिस्सा अवचेतन मन होता है। हमें इसकी जानकारी नहीं होती। इसका अनुभव कम ही होता है।
उदाहरण के रूप में समझें तो इसकी स्थिति पानी में तैरते हीमखण्ड (Iceberg)की तरह है। हिमखण्ड का मात्र 10 प्रतिशत भाग पानी की सतह से ऊपर दिखाई देता है और शेष 90 प्रतिशत भाग सतह से नीचे रहता है। चेतन मस्तिष्क भी सम्पूर्ण मस्तिष्क का दस प्रतिशत ही होता है। मस्तिष्क का नब्बे प्रतिशत भाग साधारणतया अवचेतन मन होता है।
मस्तिष्क का विभाजन जैसा कुछ नहीं होता जैसा कि उदाहरण दिया गया है। ऐसा केवल आपको समझाने के लिए को बताया है। अवचेतन मन को प्रयत्नपूर्वक चेतन मन मे परिवर्तित किया जा सकता है और तब वह चेतन मन का हिस्सा बन जाता है। अभी जो चेतन मन है वह कल अवचेतन हो जाता है।
सारे निर्णय चेतन मन ही करता है। अवचेतन मन सारी तैयारी, प्रबन्ध या व्यवस्था करता है। चेतन मस्तिष्क यह तय करता है कि क्या करना है, और अवचेतन मस्तिष्क यह तय करता है कि उसे ‘कैसे’ मूर्तरूप दिया जाय ।
हमारे सारे अनुभव, जानकारी हमारे अवचेतन में संचित रहते हैं। परन्तु जब-कभी हम उनका उपयोग करना चाहते हैं, वे चेतन का हिस्सा बन जाते हैं। सिग्मण्ड फ्रायड के अनुसार हमारी दमित इच्छाएँ एवं विचार अवचेतन में संचित रहते हैं। ये हमारे व्यक्तित्व को बनाते व प्रभावित करते हैं और हमारे व्यवहार एवं आचार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शेक्सपीयर ने कहा, “ हमारा तन बगीचा है और हम इसके बागवान हैं।” तो आप एक बागवान हैं जो विचारों के बीजों कों अवचेतन मस्तिष्क में बोते हैं, जो हमारे आदतन विचारों के अनुरूप होते हैं। हम जैसा अपने अवचेतन में बोएँगे वैसा ही फल हमें प्राप्त होगा। तदनुसार ही हमारा शरीर एवं बोध प्रकट होता है। इसलिए प्रत्येक विचार एक कारण है एवं प्रत्येक दशा एक प्रभाव है । इसी कारण, यह आवश्यक है कि हम अपने विचारों को ऐसा बनाएँ ताकि हम इच्छित स्थिति को प्राप्त कर सकें।
सारे निर्णय चेतन मन ही करता है। अवचेतन मन सारी तैयारी, प्रबन्ध या व्यवस्था करता है। चेतन मस्तिष्क यह तय करता है कि क्या करना है, और अवचेतन मस्तिष्क यह तय करता है कि उसे ‘कैसे’ मूर्तरूप दिया जाय ।
हमारे सारे अनुभव, जानकारी हमारे अवचेतन में संचित रहते हैं। परन्तु जब-कभी हम उनका उपयोग करना चाहते हैं, वे चेतन का हिस्सा बन जाते हैं। सिग्मण्ड फ्रायड के अनुसार हमारी दमित इच्छाएँ एवं विचार अवचेतन में संचित रहते हैं। ये हमारे व्यक्तित्व को बनाते व प्रभावित करते हैं और हमारे व्यवहार एवं आचार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शेक्सपीयर ने कहा, “ हमारा तन बगीचा है और हम इसके बागवान हैं।” तो आप एक बागवान हैं जो विचारों के बीजों कों अवचेतन मस्तिष्क में बोते हैं, जो हमारे आदतन विचारों के अनुरूप होते हैं। हम जैसा अपने अवचेतन में बोएँगे वैसा ही फल हमें प्राप्त होगा। तदनुसार ही हमारा शरीर एवं बोध प्रकट होता है। इसलिए प्रत्येक विचार एक कारण है एवं प्रत्येक दशा एक प्रभाव है । इसी कारण, यह आवश्यक है कि हम अपने विचारों को ऐसा बनाएँ ताकि हम इच्छित स्थिति को प्राप्त कर सकें।
suparjankarihindime
agle post me janege ki apne chetan man ko avchetan man me kayse badle